ई-कॉमर्स साइट्स पर 'डार्क पैटर्न' पर सरकार की सख्ती: अब आपकी ऑनलाइन शॉपिंग होगी ईमानदार और सुरक्षित
अगर आपने कभी ऑनलाइन कोई चीज़ खरीदी हो — तो एक न एक बार आपने ये ज़रूर देखा होगा: "सिर्फ 2 आइटम बचे हैं", "ये ऑफर बस 10 मिनट तक", "सब्सक्राइब करना आसान, लेकिन बंद करना नामुमकिन"। ये सब केवल मार्केटिंग ट्रिक्स नहीं, बल्कि डिज़ाइन की ऐसी चालें हैं जो आपको मजबूर करती हैं वो करने के लिए जो आप खुद नहीं चाहते। इनको कहा जाता है 'डार्क पैटर्न्स'। अब सरकार ने इस पर सीधा वार किया है। और अगर यह कदम सही तरीके से लागू हुआ, तो आने वाले वक्त में भारत की ऑनलाइन शॉपिंग दुनिया पहले से ज्यादा पारदर्शी, सुरक्षित और ग्राहक-हितैषी होगी।
क्या होता है 'डार्क पैटर्न'? एक आम ग्राहक की भाषा में समझिए
डार्क पैटर्न एक तरह के छुपे हुए डिज़ाइन ट्रैप होते हैं, जिन्हें वेबसाइट या ऐप इस तरह बनाते हैं कि ग्राहक को जान-बूझकर गुमराह किया जाए। आपको लगता है कि आप खुद सोच-समझकर कोई चीज़ खरीद रहे हैं, जबकि असल में पीछे से डिज़ाइन किया गया अनुभव आपकी आजादी और विकल्पों को सीमित कर देता है।
सरल शब्दों में कहें तो, ये डिज़ाइन ऐसे होते हैं कि आप ना चाहते हुए भी:
- कुछ खरीद लेते हैं
- सब्सक्रिप्शन में फंस जाते हैं
- नंबर, ईमेल या डेटा शेयर कर देते हैं
- अपना फैसला बदल नहीं पाते क्योंकि ऑप्शन ही उलझे हुए होते हैं
सरकार ने क्या किया है?
सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी (CCPA) ने 7 जून 2025 को एक अडवाइजरी जारी की, जिसमें सभी ई‑कॉमर्स कंपनियों को आदेश दिया गया है:
- तीन महीने के भीतर खुद अपनी वेबसाइट और ऐप्स का ऑडिट करें
- देखें कि उनके डिज़ाइन में कौन-कौन से डार्क पैटर्न मौजूद हैं
- उन सबको हटा दें
- फिर एक सेल्फ-डिक्लेरेशन जारी करें कि उनका प्लेटफॉर्म अब डार्क पैटर्न से मुक्त है
सरकार ने 13 डार्क पैटर्न चिन्हित किए हैं — इनमें से 4 सबसे आम
False Urgency (झूठी अर्जेंसी)
“सिर्फ 2 पीस बचे हैं!” या “10 मिनट में ऑफर खत्म!” — ताकि आप सोचने से पहले खरीद लें।
Basket Sneaking (बास्केट स्नीकिंग)
आपने सिर्फ शर्ट खरीदी, लेकिन पेमेंट पेज तक आते-आते साथ में डोनेशन, एक्स्ट्रा वारंटी या मैगज़ीन सब्सक्रिप्शन जुड़ जाता है।
Subscription Trap (सब्सक्रिप्शन ट्रैप)
फ्री ट्रायल देना आसान, लेकिन कैंसिल बटन इतने कोने में छुपाना कि ढूंढ़ना भी चुनौती हो जाए।
Confirm Shaming (कन्फर्म शेमिंग)
“नहीं, मुझे पैसे बर्बाद करने में मज़ा आता है” जैसे बटन दिखाना अगर आप ऑफर ठुकराना चाहें — ताकि आप शर्मिंदा हों और दबाव में 'हाँ' कर दें।
क्यों है यह बड़ा फैसला?
भारत का ई‑कॉमर्स बाजार 2025 में $200 बिलियन से ज़्यादा का होने वाला है। इतने बड़े डिजिटल बाजार में अगर ग्राहक को भरोसा न हो, तो लॉन्ग टर्म ग्रोथ रुक सकती है।
इस कदम के मायने:
- ग्राहक की पसंद को पहली प्राथमिकता देना
- लंबे समय तक ग्राहक का विश्वास जीतना, सिर्फ एक बार की बिक्री नहीं
- डिजिटल सिस्टम को परिपक्व बनाना, जहां बिजनेस नैतिकता के साथ चले
- स्टार्टअप्स और नए प्लेटफॉर्म्स को साफ-सुथरे मॉडल अपनाने के लिए प्रेरित करना
एक ताज़ा उदाहरण समझें
आप किसी शॉपिंग साइट पर गए, एक फोन चुना, और पेमेंट पेज तक पहुंचे। आपने देखा कि कार्ट में “₹99 का स्क्रीन प्रोटेक्टर” जुड़ गया है — आपने जोड़ा नहीं था। आपके पास इतना वक्त नहीं कि सब चेक करें। आप पेमेंट कर देते हैं।
यही है Basket Sneaking — और अब इसके लिए कंपनी को जवाबदेह ठहराया जाएगा।
अब आगे क्या होगा?
अगर ई‑कॉमर्स कंपनियाँ इस नियम का पालन नहीं करतीं, तो कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। इसके लिए CCPA पहले ही कह चुका है कि कुछ कंपनियाँ निगरानी में हैं। सरकार अब ग्राहक केंद्रित डिज़ाइन को बढ़ावा देना चाहती है — जहाँ निर्णय लेने की शक्ति पूरी तरह ग्राहक के पास हो, न कि UX डिज़ाइन की जाल में उलझ जाए।